तुलसी दास जी का जीवन परिचय- tulsi das ji ka jivan parichay

गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के महान सन्त कवि थे। आपको बता दें कि तुलसी दास जी के द्वारा ही पवित्र ग्रन्थ रामचरितमानस की रचना की गई थी. इन्हें काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी कहा जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस एक बहुत ही पवित्र लोक ग्रन्थ है जिसे पूरे देश में भक्ति भाव के साथ पढ़ा जाता है. गोस्वामी तुलसीदास का जन्म राजापुर जिला चित्रकूट में हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के एक महान संत थे और विभिन्न परीक्षाओं में तुलसीदास जी से जुड़े कई सारे प्रश्न और जीवन परिचय पुछा जाता है. इस लेख में हम आपके साथ गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय कक्षा 5 6 7 8 9 10 11 12 के लिए शेयर कर रहें हैं जो कि परीक्षा में अच्छे अंक लाने में आपकी मदद करेगा।

तुलसीदास का जीवन परिचय कक्षा 5 6 7 8 9 10 11 12 (Tulsidas ji ka Jeevan Parichay)

तुलसी दास जी हिंदी साहित्य के एक महान कवि, संत और साहित्यकार थे। उन्होंने महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की रचना की थी। रामचरितमानस विश्वसाहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है जिसे अवधी भाषा में लिखा गया है। आपको बता दें कि गोस्वामी तुलसी दास जी के बचपन का नाम राम बोला था और उनका जन्म 1532 ई।, 1589 विक्रम संवत्  में कस्बा राजापुर जिला बांदा (उत्तर प्रदेश)  में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हलसी बाई था। तुलसी दास जी की पत्नी का नाम रत्नवाली था।

ऐसा माना जाता है कि तुलसी दास जी का जन्म उनके माता के गर्भ में 12 महीने रहने के बाद हुआ और जब उनका जन्म हुआ था रुदन के स्थान पर उनके मुख से राम शब्द का उच्चारण हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि उनके मुख में पूरे दांत थे और उनका शरीर किसी 5 वर्ष के बालक के सामान था। आपको बता दें कि तुलसी दास जी की किसी भी कृति में उनके पिता के नाम का उल्लेख तो नहीं मिलता। लेकिन इनकी माता का उल्लेख उनकी इस कृति में मिलता है।

tulsi das ji ka jivan parichay

 ‘रामहि प्रिय पावन तुलसी सी। तुलसीदास हितहिय हुलसी सी।

इसका मतलब यह है कि तुलसी दास के लिए रामकथा माता हुलसी के हृदय के सामान है। इसके अलावा अन्य सोर्स से भी तुलसी दास जी की माता का नाम हुलसी पता चलता है।

तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulsi das ji ka jivan parichay):

पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास
बचपन का नाम (रामबोला
उपनाम गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि, इत्यादि
जन्मतिथि 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०)
जन्म स्थान सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज , उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु की तिथि 1623 ई० (संवत 1680 वि०)
मृत्यु का स्थानवाराणसी, उत्तर प्रदेश
गुरु नरसिंहदास
धर्म हिन्दू
दर्शन वैष्णव
तुलसीदास जीके प्रसिद्ध कथन (Quotes)सीयराममय सब जग जानी।
करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी ॥
(रामचरितमानस १.८.२)
प्रसिद्ध साहित्यिक रचनायेंरामचरितमानस
विनयपत्रिका
दोहावली,
कवितावली
हनुमान चालीसा
वैराग्य सन्दीपनी
जानकी मंगल
पार्वती मंगल

तुलसी दास जी के बारे में यह भी बताया जाता है कि इनका जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था, जिसकी वजह से इनके ज्योतिषाचार्य पिता आत्माराम ने उने जन्म से अशुभ मानकर दासी के हवाले कर दिया था। इनको जन्म देते समय प्रसव की पीड़ा की वजह से इनकी माता का देहांत हो गया था जिसके चलते इनके पिता का क्रोध और भी स्वाभाविक हो गया

जीवनियों और जनश्रुतियों की माने तुलसीदास ने जन्म लेते ही अपने मुख से राम नाम का उच्चारण किया था जिसकी वजह से इनका नाम राम बोला रख दिया गया था।

जब तुलसी दास जी बड़े हुए तो वे ये बाबा नरहरि की शरण में चले गये। एक बार तुलसी के पौधे के नीचे सोते हुए उनके मस्तक पर तुलसी के पत्तो को पड़ा देखकर नरहरिदास जी के द्वारा उनका नाम तुलसी दास रख दिया गया था।

तुलसी दास जी का विवाह

तुलसी दास जी अपनी यौवनावस्था में संस्कृत भाषा और विविध शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जब काशी गये थे तो उनकी विद्वता से प्रभावित होकर वही पास के गाँव के किसी ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह इनसे कर दिया था। जिसका नाम रत्नावली  था।

तुलसीदास जी के जीवन में परिवर्तन और राम भक्ति

जनश्रुति के अनुसार तुलसीदास जी को अपनी पत्नी रत्नावली से इतना अधिक मोह था कि एक बार जब वे उनकी उनकी अनुपस्थिति में बिना बताये अपने मायके चली गई थी वे उनके वियोग में बेहद व्याकुल हो गए थे। और वे आधी रात में ही बाढ़ से आप्लावित नदी को पार करते हुए रत्नावली के गाँव पहुँच गए। इसके बाद वे अपनी ससुराल वालों के द्वारा किये जाने वाले व्यंग्य से घबराकर सीधे तरीके से घर में नहीं पहुंचे बल्कि वे छज्जे पर लटक रही रस्सी को पकड़ते हुए ऊपर चढ़कर रत्नावली के कमरे में जा पहुंचे।

जब रत्नावली ने उन्हें देखा तो वो हैरान रह गई। और जब उसे यह पता चला कि वे रस्सी की मदद से उनके पास आये हैं तो वह आवाक् ही रह गई क्योंकि तुलसीदास जी जिस रस्सी के सहारे ऊपर आये थे वो रस्सी नहीं बल्कि सांप था। उस समय रत्नावली ने उन्हें फटकार लगाईं और कहा कि

अस्थि चर्ममय देह मम तासो ऐसी प्रीति। जो होती श्रीराम मेंह होती न तौ भवभीति।

जिसका हिंदी में मतलब है कि मेरे इस हाड-मांस के शरीर के लिए तुम्हारी जितनी आसक्ति है उसकी आधी भी अगर राम के लिए होती तो तुम्हारा जीवन स्वर जाता।

पत्नी के द्वारा ऐसा कहे जाने के बाद से ही तुलसीदास जी का मन सांसारिक आकर्षण से विरक्त हो गया और इसके बाद भी राम की भक्ति में लीन हो गए।

आपको बता दें कि एक बार वृद्धावस्था में उन्हें अत्यंत पीड़ा का सामना करना पड़ा था जिसका उल्लेख उन्होंने हनुमान‘ बाहुक में किया है। जिसमे वे कहते हैं  

पाव पीरपेर पीरबाहु पीर मुँह पीर। 

जरजर सकल शरीर पीर भई है। “

लेकिन ऐसे में भी वे विचरित नहीं हुए और राम की भक्ति में लीन रहे। संवत् 1680 में गंगा नदी के किनारे तुलसी दास जी ने सावन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अपना शरीर त्याग दिया। इस विषय में भी एक दोहा मिलता है।

संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर। 

श्रावन शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर।।

तुलसीदास जी का भगवान श्री राम से मिलन

तुलसीदास जी के श्री राम से मिलन को रामचरितमानस में एक प्रसिद्ध प्रसंग मिलता है। घटना कुछ ऐसी थी कि तुलसीदास जी राम भर्ती में लीन रहते थे। जब वे उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट के रामघाट में आश्रम बना कर रहते थे तब वे एक दिन कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने गए हुए थे। जहाँ पर तुलसीदास जी को दो राजकुमार घोड़े पर सवार आते हुए दिए लेकिन तुलसीदास जी ना तो उन दोनों राजकुमार को पहचान सके और ना ही उन दोनों राजकुमार के बीच अंतर को जान सके।

जब अगले दिन जब नदी के घाट पर तुलसीदास जी चंदन का लेप तैयार कर रहें होते हैं तो दो राजकुमार तपस्वी का भेष में तुलसीदास जी के आश्रम आते हैं। जब तुलसीदास ही उन राजकुमारों को देखते हैं तो वे पहचान जाते हैं कि वे प्रभु श्री राम और उनके छोटे भाई लक्षमण है। उन्हें देखकर तुलसीदास जी कहते हैं प्रभु में आपको पहचान गया। आपका मेरी इस कुटिया में स्वागत है।

इसके बाद श्री राम तुलसीदास जी के पास गए और चंदन के लेप का तिलक लगाने को कहा। तुलसीदास जी ने श्री राम के माथे पर तिलक लगाया और पैरो को छुआ और आशीर्वाद लिया। इस तरह से तुलसीदास जी का मिलन भगवान राम से हुआ।

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

भगवान राम से मिलन को तुलसी दास जी ने ऊपर दिए गये दोहे में बताया है। इस दोहे में तुलसी दास जी कहते हैं कि भगवान राम की मनमोहक अद्भुत छवि को देखते ही वे मंत्र मुग्ध हो गए और अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। जब श्री राम ने माथे पर चंदन का तिलक लगाने को कहा तो तुलसीदास जी पहचान गए कि वे प्रभु श्री राम है। इसके बाद तुलसीदास जी ने श्री राम के माथे पर चंदन का तिलक लगाया और भक्ति अवस्था में लीन होकर अंतर्ध्यान हो गए।

तुलसीदास जी की रचनाये-

तुलसीदास जी की रचनाये निम्न हैं

  1. रामचरितमानस – Ramcharitmanas
  2. रामललानहछू – Ram Lal Nahachu
  3. वैराग्य-संदीपनी – Vairagya-Sandeepani
  4. बरवै रामायण – Barvai Ramayana
  5. पार्वती-मंगल – Parvati-Mangal
  6. जानकी-मंगल – Janaki-Mangal
  7. रामाज्ञाप्रश्न – Ramagyanaprasna
  8. दोहावली – Dohavali
  9. कवितावली – Kavitavali
  10. गीतावली – Gitavali
  11. श्रीकृष्ण-गीतावली – Shri Krishna-Gitavali
  12. विनयपत्रिका – Vinay-Patrika
  13. सतसई – Satsai
  14. छंदावली रामायण – Chandavali Ramayana
  15. कुंडलिया रामायण – Kundaliya Ramayana
  16. राम शलाका – Ram Shalaka
  17. संकट मोचन – Sankat Mochan
  18. करखा रामायण – Karkha Ramayana
  19. रोला रामायण – Rola Ramayana
  20. झूलना – Jhulna
  21. छप्पय रामायण – Chhappai Ramayana
  22. कवित्त रामायण – Kavitt Ramayana
  23. कलिधर्माधर्म निरुपण – Kalidharmadharma Nirupan

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