kabir das ka jivan parichay. कबीर दास का जीवन परिचय इन हिंदी 100 200 300 शब्दों में और उनकी रचनाएँ, पिता का नाम, जन्म कब और कहां हुआ, मृत्यु Class 9 10 11 12: संत कबीर दास जी सबसे प्रभावशाली संतों में से एक थे। आपको बता दें कि वे 15वीं शताब्दी के भारत के एक रहस्यवादी कवि थे, जिनकी रचनाओं ने भक्ति आन्दोलन को को प्रभावित किया था। संत कबीर दास जयंती 24 जून 2021 को कबीर दास की 644 वीं जयंती के अवसर पर मनाई गई। संत कबीर दास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था। आपको बता दें कि उनका पालन-पोषण एक नीरू और नीमा नामक दंपत्ति ने किया था जो पेशे से बुनकर थे। कबीर दास जी 15वीं शताब्दी के दौरान भारत के एक प्रसिद्ध संत, कवि और समाज सुधारक थे जो रहे। कबीर दास जी का विवाह लोई नामक महिला से हुआ था।
कबीर दास जी वैष्णव संत आचार्य रामानंद को गुरु बनाना चाहते हैं लेकिन उन्होंने कबीर को अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था। लेकिन कबीर दास जी आचार्य रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे और वे मन भी मन यह सोचते थे कि क्या मैं उन्हें अपना गुरु बना पाउँगा। इसके लिए कबीर दास जी के मन में एक योजना सूजी। उन्होंने सोचा की जब स्वामी रामानंद जी सुबह 4 बजे गंगा में स्नान करने जायेंगे तो वे उनसे पहले जाकर गंगा नदी के किनारे की सीढ़ियों पर लेट जायेंगे। इसके बाद उन्होंने ऐसा ही किया। एक वे सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी के किनारे चले गए और वे पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए।
जब रामानंद जी गंगा में नहाने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे तभी उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पड़ा और तब उनके मुख से राम-राम शब्द निकलता। रामानंद जी के मुख से निकले प्रभु श्री राम के नाम को कबीर दास जी ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया। संत कबीर दास जी अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर चले गए और उनकी मृत्यु 1518 ईस्वी में हुई थी।
कबीर दास जी का जीवन परिचय संक्षिप्त में (Kabir Das ka Jivan Parichay)
नाम व उपनाम | कबीर दास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब |
जन्म तिथि | 1398 ई. |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के वाराणसी (लहरतारा नामक स्थान में) |
मृत्यु | 1518 में |
मृत्यु स्थान | काशी के पास मगहर में |
कबीर दास की प्रमुख रचनाएं | साखी, सबद और रमैनी |
गुरु का नाम | स्वामी रामानंद |
पत्नी का नाम | लोई |
पिता का नाम | नीरू जुलाहे |
माता का नाम | नीमा |
पुत्र का नाम | कमाल |
पुत्री का नाम | कमाली |
भाषा | अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
साहित्य | साखी, सबद, रमैनी, सारतत्व, बीजक |
कबीरदास जी का साहित्यिक परिचय
कबीर दास जी एक ऐसे संत थे जो कि निर्गुण निराकार ईश्वर को मानते थे। उनका ऐसा मानना था कि भगवान् कण-कण में है। और यही कारण था कि वे अवतारवाद बहुदेवाद तथा मूर्ति पूजा पर विश्वास नहीं रखते थे। धर्म में मानी जाने वाली सभी परंपराओं व पद्धतियों का वे खंडन करते थे। उनका ऐसा मानना था कि मनुष्य किसी भी स्थान से किसी भी पूरा के तरीके से भगवान की भक्ति कर सकता है। यही कारण था कि वे वेद-शास्त्रों में दी गई पूजा पद्धतियों का खंडन करते थे। वे हिंदू धर्म में होने वाले जात-पात और छुआछूत को नहीं मानते थे। कबीरदास जी ऐसा मानते थे कि भक्ति के क्षेत्र में आडंबर नहीं बल्कि सद्भावना की आवश्यकता है।
वह ऐसा मानते थे कि ईश्वर अनंत, अगम और अगोचर है। भगवान हम सब के ह्रदय में समाया हुआ है और उनके मंदिर, तीर्थस्थल और अन्य धर्मिक स्थलों पर खोजना व्यर्थ है। कबीर दास ही का ऐसा मानना था कि मनुष्य जिन भी देवताओं की पूजा करते हैं वे या तो केवल कल्पना है या साधारण मनुष्य है। जिनको लोगो ने अपने स्वार्थ के लिए भगवान बना दिया है।
कबीर दास जी ने हिन्दू धर्म की मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, व्रत और इसके साथ ही मुसलमानों के हज, रोजा, नमाज की भी आलोचना की। उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगो के द्वारा खास वस्त्र पहनना, टोपी लगाना, और तिलक लगाना, बाल बढ़ाना या मुंडन, खास तरह की दाढ़ी रखने आदि बातो को अंधविश्वास का नाम दिया। उनका कहना था कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए किसी भी विशेष पूजा, पहनावे की जरूरत नहीं है। सहज भक्ति से हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। कबीर दास जी के दोहे दोहे मौलवियों और पंडितों के द्वारा किये जाने वाले पाखंड का विरोध करते हैं।
कबीर दास जी की भाषा शैली (Bhasha Shaili)
कबीर दास जी एक जनसामान्य कवी था उनकी भाषा सिंधी सरल था। उनकी रचनाओं में हिंदी भाषा की सभी बोलिया सम्मिलित थी जैसे ब्रज, हरियाणवी, पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी आदि। उनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा है।
कबीरदास का भाव पक्ष (Kabir Das ka Bhav Paksh)
कबीर दास जी निर्गुण और निराकार भगवान को मानते थे। उनकी रचनाओ में आप राम शब्द का प्रयोग होते देख सकते हैं। वे निर्गुण ईश्वर की आराधना करते है और एक समाज सुधारक माने जाते हैं। उनके द्वारा हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोगो के आडंबर और कुरीतियों का विरोध किया गया।
कला पक्ष
कबीरदास जी का कला पक्ष भी भाव पक्ष की तरह अदभुद है। आपको बता दें कि कबीर दास जी भाषा में ब्रज, हरियाणवी, पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूर्वी हिंदी और फारसी आदि भाषा शामिल हैं। इसी वजह से कबीरदास जी की भाषा को श्याम सुंदर दास ने पंचमेल खिचड़ी और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सधुक्कड़ी भाषा कहा है। कबीर काव्य में दोहा शैली और गेय में पद शैली का प्रयोग किया गया है। इसके साथ ही इनके काव्यो में हास्य, श्रंगार, और हास्य रस का प्रयोग किया गया है।
कबीर दास का शिक्षा
कबीर दास जी ने अपनी धार्मिक शिक्षा गुरु रामानंद प्राप्त की थी। आपको बता दें कि पहले तो रामानंद कबीरदास जी को अपना शिष्य बनाने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन बाद में उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था। ऐसा कहा जाता है कि आज भी कबीर दास जी का परिवार वाराणसी के कबीर चौरा में रहता है। भले ही कबीर दास जी अनपढ़ थे लेकिन उन्हें ज्ञान बहुत था। उन्होंने साधु-संतों और फकीरों की संगती में वेदांत, उपनिषद और योग का ज्ञान भी प्राप्त किया था। इसके साथ ही उन्होंने सूफी फकीरों की संगति में इस्लाम धर्म के सिद्धांतों को भी जाना। कबीरदास जी देशाटन के दौरान साधु-संतों की संगति में बहुत ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया था।
कबीरदास के गुरु (Kabir Das ke Guru)
कबीरदास जी अपना गुरु रामानंद को मानते थे। जब रामानंद ने कबीर को नीच जाति का समझकर उन्हें अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था। तब कबीर दास जी ने उन्हें अपना गुरु बनाने की ठान ली। जब सुबह रामानंद जी सुबह गंगा स्नान करने जा रहे थे तो कबीर दास जी गंगा नदी के तट पर जाकर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए। रामानंद जी का जब कबीर जी के उपर पड़ा तो उनके मुख से राम शब्द निकला। तभी से कबीर ने राम नाम को को अपना गुरु मंत्र और रामानंद को अपना गुरु मान लिया।
कबीर दास जी की भावपक्षीय विशेषताएं (Bhav pakshi visheshtaen)
- निर्गुणोपासना:
- ज्ञान का उपदेश:
- नाम की महत्ता:
- भक्ति एवं नीति:
- प्रेम की महत्ता:
- समाज सुधार की भावना:
- रहस्य भावना:
- विविध रस:
- समन्वय की भावना:
- गुरु की महिमा:
- सत्य भावना
- दृढ़ आत्मविश्वास
- सरलता तथा सहदयता
संत कबीर दास जी के दोहे –
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।
काल करे सो आज कर आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काको लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि। सब अंधियारा मिट गया दीपक देख्या माही
दु:ख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोई। जो सुख में सुमिरन करे तो दु:ख काहे को होय।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय। जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा मैं रोदूंगी तोय।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी कह गए दास कबीर।