संधि किसे कहते हैं परिभाषा, भेद और उदाहरण: Sandhi in Hindi

संधि किसे कहते हैं (sandhi kise kahate hainm Paribhasha, bhed aur Prakar, स्वर संधि, व्यंजन संधि
विसर्ग संधि उदाहरण सहित समझाएं: संधि हिंदी ग्रामर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है। अगर आप हिंदी व्याकरण को अच्छी तरह से सीखना चाहते हैं तो आपको यह पता होना चाहिए की संधि क्या होती है और इसके कितने प्रकार और भेद होते हैं। संधि से परीक्षा में बहुत प्रश्न अवश्य पूछे जाते हैं इसलिए आपको इसकी परिभाषा और इसके प्रकार जैसे स्वर संधि, व्यंजन संधि, दीर्घ संधि, वृधि संधि और यण संधि के बारे में पता होना चाहिए। इस लेख में हम आपको संधि किसे कहते हैं, इसके भेद, प्रकार, परिभाषा के बारे में जानकारी तो देंगे ही। इसके साथ ही हम आपको व्यंजन और विर्सग संधि के बारे में भी बतायंगे।

संधि किसे कहते हैं (sandhi kise kahate hain)

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4 संधि के प्रकार (Sandhi Kitne Prakar Ki Hoti Hai)

संस्कृत भाषा में ‘संधि’ का मतलब होता है बंधन या जुड़ाव। हिंदी व्याकरण में दो वर्णों मेल से उत्पन्न होने वाले शब्द को संधि कहते हैं। संधि का मुख्य उद्देश्य शब्दों को सुगम बनाना है, जिससे कि उन्हें अच्छी तरह से समझा जा सके। हिंदी व्याकरण में संधि बहुत महत्वपूर्ण है। आसान शब्दों में कहें तो हिंदी व्याकरण का एक ऐसा नियम है जिसमे दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर नए शब्दों का उत्पादन किया जाता है। आइये अब आपको संधि की परिभाषा बताते हैं।

संधि की परिभाषा (Sandhi Ki Paribhasha)

“दो समीपवर्ती वर्णों के मिलने से जो विकार (बदलाव) होता है उसे संधि कहते हैं। संधि में पहले शब्द के अंतिम शब्द और दूसरे शब्द के आदि वर्ण को जोड़ा जाता है तो नये शब्द का निर्माण होता है”

संधि के उदाहरण

यहाँ संधि के उदाहरण दिए गए हैं, जिनसे आप संधि को अच्छी तरह से समझ पाएंगे।

  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 
  • सुख + उपज = सुखोपज
  •  जगत + नाथ = जगन्नाथ
  • श्री + उद्धर = श्रुत्धर
  • राम + इच्छा = रामेच्छा
  • महा + उपदेश = महोपदेश
  • द्रवि + णम् = द्रविणम्
  • देव + अनगरी = देवानगरी
  • दीप + आवली = दीपावली
  • जल + उदक = जलोदक
  • अच्छ + आदमी = अच्छादमी
  • अग्नि + कुंड = अग्निकुंड

जैसा कि इन उदहारण से समझ आ रहा है कि यहाँ पर दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर एक नया वर्ण उत्पन्न किया गया है।

संधि विच्छेद किसे कहते हैं (sandhi vichchhed kise kehte hai)

संधि विच्छेद वह विधि है जिसके हम संधि के नियम द्वारा मिले वर्णों को अलग करके फिर से मूल अवस्था में ले आते हैं। संधि विच्छेद करने से उन शब्दों के वर्णों को समझने में आसानी होती है जिनमे संधि होती है। इसके अलावा शब्द का संधि विच्छेद करके हम शब्दों के वर्णों की मात्रा और उच्चारण भी समझ सकते हैं।

यहाँ संधि विच्छेद को अच्छी तरह से समझने के लिए हमने कुछ उदाहरण दिए गए हैं।

  • सूर्य+उदय = सूर्योदय
  • समुद्र+आकर्षण = समुद्राकर्षण
  • सङ्गम+ज्ञ = सङ्गज्ञ
  • श्री+अंगुली = श्रृंगुली
  • बहु+वचन = बहुवचन
  • दिन+उदय = दिव
  • अवगुण्ठन+गति = अवगुण्ठित
  • अर्ध+चन्द्र = अर्धचन्द्र
  • अग्नि+कुंड = अग्निकुंड
  • पञ्च+अध्याय = पञ्चाध्याय

जैसा कि इन उदाहरणों में देखा जा सकता है कि संधि के द्वारा दो या दो से अधिक शब्दों के वर्णों को जोड़कर एक नया शब्द बनाया गया है। लेकिन संधि विच्छेद के द्वारा हम फिर से इन शब्दों के वर्णों को अलग कर सकते हैं।

संधि के प्रकार (Sandhi Kitne Prakar Ki Hoti Hai)

संधि के पहले वर्ण के अनुसार या आधार पर संधि के तीन भेद होते हैं

1. स्वर संधि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग संधि

स्वर संधि (Swar Sandhi Kise Kahate Hain)

जब दो स्वरों का मेल से जो विकार उत्पन्न होता है तो वह स्वर संधि होती है। उदाहरण के लिए,  सूर्य+ अस्त= सूर्यास्त इसमें पहले शब्द अंतिम वर्ण में अ का उच्चारण हो रहा है और दूसरे शब्द के आदि वर्ण में भी अ का है। इसलिए (अ+अ=आ) के मेल से जो विकार उत्पन्न होगा वो स्वर संधि होगी।

स्वर संधि के उदहारण

सूर्य + उदय = सूर्योदय

मधु + उपज = मधुपज

भूमि + उत्पादन = भूमिउत्पादन

गाय + उद्यान = गायोद्यान

स्वर संधि कितने प्रकार की होती है (swar sandhi ke prakar udaharan sahit)

आपको बता दें कि स्वर संधि के 5 भेद होते हैं

1. दीर्घ संधि

2. गुण संधि

3. वृद्धि संधि

4. यण संधि

5. अयादि संधि

दीर्घ संधि

दीर्घ संधि में ह्स्व या दीर्घ अ इ उ के बाद क्रमश हस्व या दीर्घ अ इ उ स्वर आते हैं तो दोनों को मिलकर दीर्घ आ ई ऊ हो जाते हैं।

जैसे

अ + अ = आ

इ + अ = ए

उ + अ = ओ

अ + आ = आः

इ + आ = ऐ

उ + आ = औ

ऋ + अ = ऋः

ई + अ = ईः

ऊ + अ = ऊः

दीर्घ स्वर संधि के उदहारण

देव + अस्तु = देवास्तु

भ्राता + अनुज = भ्रात्रानुज

पशु + आहार = पशूआहार

माता + अम्बा = माताम्बा

सर्प + आसन = सर्पासन

जैसा कि उदहारण से समझ आ रहा है कि इन शब्दों में दो स्वरों के जुड़ने पर पहले स्वर को दीर्घ किया गया ह।

अ + अ = आ

राम + अर्चा = रामार्चा

सुर + असा = सुरासा

राज + अधिकार = राजाधिकार

सम + अभिमान = समाभिमान

धन + अभाव = धनाभाव

महा + अभियान = महाभियान

जल + अपूर्व = जलापूर्व

वसु + अप्रतिम = वसुआप्रतिम

शुभ + अभिलाषा = शुभाभिलाषा

मन + अभिमान = मनाभिमान

अ + आ = आ

देव + आलय = देवालय

राज + आधीन = राजाधीन

स्वर्ग + आश्रय = स्वर्गाश्रय

मनुष्य + आकार = मनुष्याकार

उद्योग + आवास = उद्योगावास

वृक्ष + आरोहण = वृक्षारोहण

सूर्य + आसन = सूर्यासन

धन + आर्जन = धनार्जन

पुष्प + आभास = पुष्पाभास

जीव + आधार = जीवाधार

आ + अ = आ

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
रेखा + अंकित = रेखांकित

परीक्षा+ अर्थी = परीक्षार्थी

सीमा  + अंत = सीमान्त

रेखा + अंश = रेखांश

इ और ई की संधि

इ + इ = ई

रवि + इंद्र = रवींद्र

मुनि + इंद्र = मुनींद्र

इ + ई = ई

 गिरि + ईश = गिरीश

मुनि + ईश = मुनीश

ई + इ = ई

मही + इंद्र = महींद्र

नारी + इंदु = नारींदु

ई + ई = ई

नदी + ईश = नदीश

मही + ईश = महीश ।

उ और ऊ की संधि

उ + उ = ऊ-

भानु + उदय = भानूदय

विधु + उदय = विधूदय

उ + ऊ = ऊ-

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि

ऊ + उ = ऊ-

वधू + उत्सव = वधूत्सव

वधू + उल्लेख = वधूल्लेख

ऊ + ऊ = ऊ

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

वधू + ऊर्जा = वधूर्जा

गुण संधि (Gun Sandhi)

अगर अ और आ के बाद “इ”, “ई” या “उ”, “ऊ” या ओ तथा ऋ स्वर आते हैं तो ऐसे में दोनों के मिलने पर क्रमश “ए” , ‘ओ’ और अर् हो जाते हैं। इसे ही गुण स्वर संधि कहते हैं।

यहाँ नीचे हमने गुण स्वर संधि को उदाहरण सहित बताया है।

अ + इ = ए

नर + इंद्र = नरेंद्र

अ + ई = ए

नर + ईश= नरेश

आ + इ = ए

महा + इंद्र = महेंद्र

आ + ई = ए

महा + ईश = महेश

अ + उ = ओ

ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश ;

आ + उ = ओ

महा + उत्सव = महोत्सव

अ + ऊ = ओ

जल + ऊर्मि = जलोर्मि ;

आ + ऊ = ओ

महा + ऊर्मि = महोर्मि।

अ + ऋ = अर्

देव + ऋषि = देवर्षि

आ + ऋ = अर्

महा + ऋषि = महर्षि

वृद्धि संधि क्या है उदहारण सहित

जब अ या आ के बाद ए या ऐ आता है तो दोनों के मेल से ऐ हो जाता है। इसी प्रकार जब अ या आ के बार ओ या औ आता है तो दोनों के मेल से औ हो आता है।

जैसे

अ + ए = ऐ 

एक + एक = एकैक

लोक + एषणा = लोकैषणा

अ + ऐ = ऐ

मत + ऐक्य = मतैक्य

धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य

आ + ए = ऐ

सदा + एव =सदैव

रमा + ऐश्वर्य = रामैश्वर्य

अ + ओ  =औ

दंत + ओष्ठ  = दंतौष्ठ

परम + ओजस्वी =परमौजस्वी

अ + औ =औ

परम + औषद= परमौषध

परम + औदार्य= परमौदार्य

आ + औ =औ

महा + औषध =महौषध

यण संधि क्या है उदहारण सहित

जब कभी भी ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ या ‘ऋ’ के बाद असमान या भिन्न स्वर आता है तो इ, ई को ‘य’:  उ, ऊ को ‘व’ और ऋ को ‘र’ हो जाता है। संधि के इस नियम को यण संधि कहते हैं।

इ + अ= य  

 यदि + अपि= यद्यपि

 अति + अधिक = अत्यधिक

इ + आ= या 

अति + आवश्यक= अत्यावश्यक

इति  + अदि = इत्यादि    

इ + उ= यु          

अति + उत्तम= अत्युत्तम

प्रति + उपकार = प्रत्युपकार

इ + ऊ = यू       

अति + उष्म= अत्यूष्म

 नि + ऊन = न्यून

उ + अ= व         

अनु + आय= अन्वय

सु  + अच्छ = स्वच्छ

उ + आ= वा       

मधु + आलय= मध्वालय

सु + आगत = स्वागत

उ + ओ = वो     

गुरु + ओदन= गुर्वोदन

उ + इ= वि         

अनु + इत= अन्वित

अनु + इति= अन्विति

उ + ए= वे          

अनु + एषण= अन्वेषण

प्रभु + एषणा + प्रभ्वेषणा

ऋ + अ= र         

पितृ + अनुमति = पित्रनुमति

ऋ + आ= रा      

पितृ + आदेश= पित्रादेश

मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा

अयादि संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित

ऐसी संधि जिसमें ‘ए’, ‘ऐ’ तथा ‘ओ’, ‘औ’ स्वरों का मेल किसी अन्य स्वर से हो तो ‘ए’ का ‘अय’, ‘ऐ’ का आय, ओ का अव और औ का आव के रूप में परिवर्तन हो जाता है, इसे अयादि संधि कहते हैं।

ए + अ= अय्

ने + अन = अयन

शे + अन = शयन

ऐ + अ= आय्

नै + अक = नायक

गै + अक = गायक

ओ + अ= अव्

पो + अन = पवन

भो + अन = भवन

औ + अ= आव्

औ + इ= आव्

नौ + इक= नाविक                       

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