महादेवी वर्मा का जीवन परिचय- Mahadevi Verma ka jivan parichay in Hindi

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय साहित्यिक परिचय, उनकी प्रमुख रचनाएँ, भाषा शैली, मूल नाम, शिक्षा कक्षा 6 7 8 9 10 11 12 हिंदी में mahadevi verma ka jivan parichay : महादेवी वर्मा भारत में हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उनका जन्म 1907 में उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले के निहलपुर गांव में हुआ था। आपको बता दें कि महादेवी वर्मा छायावाद आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण आवाज़ों में से एक थीं। यह एक हिंदी कविता में एक साहित्यिक आंदोलन था जो 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में उभरा था। महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो कि शिक्षा और साहित्य को बेहद महत्व डेटा था। महादेवी वर्मा उच्च शिक्षित थीं। आपको बता दें कि उन्होंने इलाहाबाद के प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर डिग्री प्राप्त की थी।

Mahadevi Verma ka jivan parichay in Hindi

साल 1930 में तब वर्मा के साहित्यिक करियर की शुरुआत हुई जब उनकी पहली कविता संग्रह “सौन्दर्यलहरी” के प्रकाशन हुआ। महादेवी वर्मा की कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में “यमा”, “सखी” और “दीपशिखा” के नाम शामिल हैं। उनकी ज्यादातर कविताएं प्रेम, प्रकृति और अन्य कुछ सामाजिक मुद्दों जैसे महिला अधिकार, जाति व्यवस्था और गरीबी के मुद्दों पर केन्द्रित होती थी। आपको बता दें कि महादेवी वर्मा सिर्फ साहित्य के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक कार्य में भी सक्रिय थीं। वह भारतीय महिला प्रेस कोर की सदस्य थीं और विभिन्न सामाजिक वसांस्कृतिक संगठनों का भी हिस्सा थी। भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें साल 1979 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार, “ज्ञानपीठ पुरस्कार” से भी नवाजा गया था। वे हिंदी साहित्य की एक प्रमुख हस्ती थी उनकी रचनाएँ हिंदी लेखकों और पाठकों को बेहद प्रेरित और प्रभावित करती हैं।

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय- Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay in Hindi

नाम (Name)महादेवी वर्मा
जन्म स्थान (birth place)उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में के निहलपुर गांव में
जन्म (Birth)1907 में
उपलब्धियां (Achievements)महिला विद्यापीठ की प्राचार्य
पदम भूषण पुरस्कार
सेकसरिया तथा मंगला प्रसाद पुरस्कार
भारत भारती पुरस्कार
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
शिक्षा (education)प्रयाग
आरंभिक शिक्षा (early Learning)इंदौर में
पति का नाम (husband’s name)डॉक्टर स्वरूप नारायण मिश्रा
पिता का नाम (father’s name)श्री गोविंद सहाय वर्मा
भाषा (Language)खड़ी बोली
माता जी का नाम (mother’s name)श्रीमती हेम रानी देवी
मृत्यु (death)11 सितंबर 1987
रचनाएं (creations)नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, अग्निरेखा, दीपशिखा, सप्तपर्णा, आत्मिका, दीपगीत, नीलाम्बरा ·सन्धिनी
साहित्य में योगदान (contribution to literature) गीतात्मक भावपरक शैली

जीवन परिचय-

महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के निहलपुर गांव में हुआ था। हिंदी साहित्य में उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता गोविंदसहाय वर्मा एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे और माता हेमरानी साधारण कवयित्री थी, जो कि श्री कृष्ण की भक्त थी। महादेवी वर्मा के नाना ब्रज भाषा में कविता करने के शौक़ीन थे। नाना और माता का प्रभाव काफी हद तक महादेवी वर्मा के जीवन पर पड़ा था। महादेवी वर्मा ने अपनी शुरूआती शिक्षा इंदौर में की और उनकी उच्च शिक्षा उत्तर प्रदेश के प्रयाग में हुई। उनका विवाह सिर्फ 9 वर्ष की उम्र में स्वरूप नारायण वर्मा हो गया था। इन्ही दिनों उनकी माता का भी देहांत हो गया था लेकिन ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी।

शिक्षा

महादेवी वर्मा एक बहुत ही प्रसिद्ध हिंदी कवि, निबंधकार और स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने अपने समय में एक अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। 26 मार्च, 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में जन्मी महादेवी वर्मा के पिता गोविंदा प्रसाद वर्मा, संस्कृत के प्रोफेसर थे, और उनकी माँ, हेमलता देवी, एक गृहिणी थीं।  महादेवी वर्मा ने अपनी शिक्षा घर पर शुरू की जहाँ पर उन्होंने हिंदी, संस्कृत और संगीत सीखा था।

कक्षा 6 तक पढ़ाई करने के बाद ही मात्र 9 साल की उम्र में ही महादेवी वर्मा का विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ कर दिया गया। इसके बाद उनकी शिक्षा कुछ समय के लिए छूट गई, क्योंकि उनके ससुर लड़कियों की शिक्षा को लेकर पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब उनके ससुर का देहांत हो गया तो इसके बाद महादेवी वर्मा ने फिर से अपनी शिक्षा को शुरू किया। इसके बाद उन्होंने लगभग 19 साल की उम्र में प्रयाग (प्रयागराज) से प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा पास की। इसके साथ ही पूरे प्रान्त में उनका स्थान प्रथम रहा। जिसकी वजह से उन्हेंछात्रवृत्ति भी प्रदान की गई थी। इसके बाद 1924 में महादेवी जी ने हाई स्कूल की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और एक बार फिर से उन्होंने प्रांत में पहला स्थान प्राप्त किया। जिसके लिए उन्हें एक बार फिर से छात्रवृत्ति मिली। इसके बाद महादेवी वर्मा की शिक्षा जारी रही और 1926 में उन्होंने इंटरमीडिएट और इसके बाद 1928 उन्होंने BA की पढ़ाई भी की। 1933 में महादेवी वर्मा ने संस्कृत विषय में मास्टर ऑफ आर्ट (MA) की परीक्षा पास की। इस तरह से विद्यार्थी जीवन में वह काफी सफल रही। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद में क्रॉस्वाइट गर्ल्स कॉलेज और प्रयाग महिला विद्यापीठ में भाग लिया और हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी की पढाई की।

साल 1929 में महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातक की उपाधि हासिल की। महादेवी वर्मा को समाजिक और राजनितिक विषयों पर भी काफी दिलचस्पी थी जिसके परिणामस्वरुप उन्होंने  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। इसके साथ ही कस्तूरबा गांधी नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के लिए काम करते हुए उन्होंने महिला शिक्षा और सशक्तिकरण पर जोर दिया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया साथ ही नारी की स्वतंत्रता भी काफी संघर्ष किया। महादेवी वर्मा के जीवन पर महात्मा गांधी का तथा कला साहित्य साधना पर रविंद्र नाथ टैगोर का काफी प्रभाव था।

सीधे शब्दों में कहें तो महादेवी वर्मा की शिक्षा संस्कृत, हिंदी और संगीत पर केंद्रित थी। हालाँकि सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी उनकी रूचि काफी ज्यादा थी जिसकी वजह वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अलावा महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए भी अग्रणी थी।

साहित्यिक परिचय

महादेवी वर्मा की साहित्य और संगीत के साथ ही चित्रकला में भी रुचि थी। सबसे पहले इनकी रचनाएं चाँद नाम की एक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। आपको बता दें कि वे ‘चांद’ पत्रिका की संपादिका भी रही थी। भारत सरकार के द्वारा महादेवी जी को अपनी साहित्य साधना के लिए पदम भूषण से नवाजा था। इसके अलावा इनको ‘सेकसरिया’ तथा ‘मंगला प्रसाद’ जैसे पुरुष्कार भी प्रदान किये गए थे। इन्हें 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के द्वारा भारत-भारती पुरस्कार प्रदान किया गया था जिसकी राशि 1 लाख रूपये थी। इसी साल इन्हें काव्य ग्रंथ यामा पर ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। इन्होने अपने जीवन में प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना की। आधुनिक काव्य के साथ ही साज-श्रंगार में भी इनका बड़ा योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना काफी अमूल्य है जिसकी वजह महादेवी को आधुनिक युग की मीरा के रूप में भी जाना जाता है। महान कवयित्री का स्वर्गवास 11 सितंबर, 1987 को हुआ था लेकिन करुणा और भावुकता से भरे इनके काव्य अमर हैं।

महादेवी वर्मा जी की रचनाएं

1. नीहार

महादेवी वर्मा द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘नीहार’ एक उत्कृष्ट काव्य संग्रह है। इसमें उन्होंने अपनी भावनाओं, दर्शनों, और संवेदनाओं को सार्थकता और सौंदर्य से व्यक्त किया है। ‘नीहार’ के विभिन्न कविताओं में महादेवी वर्मा के द्वारा विभिन्न विषयों को व्यक्त किया है जैसे जीवन, मृत्यु, प्रेम, स्त्रीत्व, समाज और राष्ट्र। नीहार में उनकी 1923 ई। से लेकर 1929 ई। तक के बीच लिखी कुल 47 कविताएँ हैं। इसमें उन्होंने अपने जीवन के सभी स्थाई और अस्थाई तत्वों को बड़ी ही खूबसूरती के साथ व्यक्त किया है। सीधे शब्दों में कहें तो ‘नीहार’ महादेवी वर्मा का एक बहुत ही सुंदर और उत्कृष्ट काव्य संग्रह है जिसमें उन्होंने अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया है।

2. रश्मि

रश्मि का प्रकाशन 1932 में हुआ। यह उनका दूसरा कविता संग्रह है। आपको बता दे कि इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। रश्मि में महादेवी वर्मा जी के द्वारा मृत्यु ,सुख -दुःख विषयों पर अपने दृष्टिकोण का वर्णन किया है।

3. नीरजा

नीरजा का प्रकाशन 1934 में हुआ था। आपको बता दें कि यह महादेवी वर्मा जी की कविता का तीसरा संग्रह है। जिसमे 1931 से 1934 तक की रचनाएँ हैं। बता दें कि नीरजा के लिए महादेवी वर्मा को साल 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, भी प्रदान किया गया था। इसमें 58 गीत संकलित है, जिनमें से अधिकांश विरह-वेदना की भावना से भरे हुए हैं। इसके साथ ही कुछ गीतों में प्रकृति का मनोरम चित्र प्रदर्शित किया गया है।

4. सान्ध्य गीत

सान्ध्य गीत का प्रकाशन 1936 में हुआ था जिसके कविता के गीतों में नीरजा के भावों का रूप मिलता है। आपको बता दें कि सांध्यगीत महादेवी का चौथा कविता संग्रह हैं। जिसमे उनके 1934 से 1936 ई० तक के गीत हैं। उनकी इन कविताओं में सुख-दुख का बल्कि आँसू और वेदना, मिलन और विरह, आशा, निराशा एवं बन्धन-मुक्ति आदि का वर्णन मिलता है

5. दीपशिखा-

दीपशिखा का प्रकाशन 1942 में हुआ था। यह  महादेवी वर्मा की कविता का पांचवा संग्रह है। इसमें 1936 से 1942 ई। तक के गीत हैं। आपको बता दें कि इस कविता- संग्रह में 147 पेज हैं जिसमे कुल 51 कविताएँ हैं। दीपशिखा को लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया।

अन्य रचनाएं- महादेवी वर्मा की अन्य रचनाओं में सप्तपर्णा, आत्मिका,  दीपगीत, नीलाम्बरा और सन्धिनी के नाम शामिल हैं।

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